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१. सातवे गुणस्थान की अपेक्षा से । २. मध्य लोक की अपेक्षा से । ३. मानव भव की अपेक्षा से । निगोद से निर्वाण की यात्रा में मानव-भव बीच में है ।
. यदि दीक्षा ग्रहण नहीं की होती, गृहस्थी में रहे होते तो किसी का मानना पड़ता कि नहीं ?
दूसरों का मानना अच्छा कि भगवान का मानना अच्छा ?
भगवान की आज्ञानुसार जीवन जियें, कि मोह की आज्ञानुसार जीवन जियें ? यह हमें निश्चित करना है ।
गुरु ही मोह-तिमिर के नाशक हैं, सत्य ज्ञान प्रदाता है । सद्गुरु कैसे होते हैं ?
श्रुत में उपयोगवंत होते हैं । केवल शिक्षित ही नहीं, परन्तु शिक्षा के अनुसार उपयोगपूर्वक जीने वाले होते हैं ।
चारित्र में रमण करनेवाले होते हैं, आत्म-तत्त्व का आलम्बन ग्रहण करनेवाले होते हैं ।
___'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक जोयु. अद्भुत वाचनाओने उद्धृत करीने लख्युं छे. ते श्रमण वृंदोने उपयोगी बनशे. बंधु-युगल जोडीए ज्ञान-साधनामां अभिवृद्धि करी तेनी अनुमोदना.
___- आ. विजयगुणरत्नसूरि - पं. रविरत्नविजय
सुरत.
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