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________________ शक्ति होते हुए भी नहीं पढो तो क्या ज्ञान-गुण का हनन नहीं होगा ? क्या ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बंधेगे ? दुकान लेने के बाद गृहस्थ यदि दो वर्षों तक बंध रखे तो... ? ___ हमें अध्ययन ज्यादा लगता है। गृहस्थों को सन्तोष नहीं है। हमें सन्तोष है । कमाई करके खर्च ही करना हो तो फिर कमाई नहीं करना ही अच्छा, ऐसा सोचकर कोई गृहस्थ कमाई करना छोड़ नहीं देता तो फिर हम किसी बहाने की आड लेकर पढना छोड़ कैसे सकते अध्ययन करना, परन्तु कैसा अध्ययन करना ? जो अध्ययन अध्यात्म में प्रवृत्ति कराये वह अध्ययन करें । 'निज स्वरूप जे किया साधे, तेह अध्यात्म कहिये रे' हमारी विशिष्ट क्रिया के द्वारा हमारा ज्ञान अभिव्यक्त होता है । क्रिया अर्थात् हमारा दैनिक वर्तन । हमारे व्यवहार के द्वारा ज्ञान की परीक्षा होती है । भाव-चारित्र आ गया तो ज्ञान और दर्शन आ ही गये समझें । इसके बिना भाव-चारित्र आता ही नहीं । . किसी की बारात में जाओ तो क्या दूल्हे को भूल जाओगे ? दूल्हे के बिना तो बारात हो ही नहीं सकती । हमारी अभी यही दशा है । दूल्हे को, आत्मा को हम भूल गये हैं । अतः संथारा पोरसी में 'एगोहं' इन दो गाथा के द्वारा आत्मा को याद करनी है । 'एह प्रबोधना कारण तारण सद्गुरु संग, श्रुत उपयोगी चरणानंदी करी गुरुरंग; आतम तत्त्वावलंबी रमता आतमराम, शुद्ध स्वरूपने भोगे, योगे जस विश्राम' ॥ १८ ॥ • जाना था पूर्वमें, हम जा पहुंचे पश्चिम में । गुरु हमें उल्टे मार्ग पर जाने से रोकते हैं । . इस समय हम बीच में हैं । 'पंथ वच्चे प्रभुजी मल्या...' बीच में तीन प्रकार से : ५३८ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि-१)
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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