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प्रवचन देते हुए पूज्यश्री वि.सं. २०२३, वांकी (कच्छ)
८-११-१९९९, सोमवार
का. व. ३०
पंचवस्तुक जहाज में बिठा कर इष्ट स्थान पर पहुंचाने वाले का हम कितना उपकार मानते हैं ? उससे भी अनन्त उपकार तीर्थंकरों का है, जिन्होंने हमें तीर्थरूपी जहाज में बिठाये हैं ।
जहाज का स्वामी चाहे अनुपस्थित हो, परन्तु जहाज का कार्य चलता ही रहता है, उसी प्रकार भगवान भले ही अनुपस्थित हो, तीर्थ का कार्य चलता ही रहता है ।
. अष्टांग को योग कहते है, उस प्रकार चारित्र भी योग कहलाता है । चारित्र में दर्शन-ज्ञान होता ही है । चारित्री ज्ञानी एवं श्रद्धालु होता ही है । अन्यथा उसका चारित्र सच्चा नहीं माना
जायेगा ।
. 'भाव से भाव उत्पन्न होते हैं' उस प्रकार संसार में भी कहा जाता है । हम जैसा भाव रखते है, सामनेवाले व्यक्ति के मन में वैसा ही भाव उत्पन्न होता है । हम यदि धोखाधड़ी का भाव रखें और उपर से चाहे जितना दिखावा करें, परन्तु सामनेवाले
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