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आज्ञा एवं आज्ञा-पालक एक हैं । आज्ञा पालन करते ही प्रभु हृदय में आ जाते हैं ।
जड़ कागज के टुकड़े पर लिखे नाम मात्र से आप 'कोलकाता' तक पहुंच गये ?
शशिकान्तभाई ! नाम की कितनी ताकत है ? __शशिकान्तभाई कोलकाता तक जा सकते हैं तो भगवान अपने हृदय में क्यों न आये ? नाम लो और भगवान हाजिर !
__ 'नाम ग्रहंता आवी मिले, मन भीतर भगवान' प्रभु ने तो हम सब के साथ आत्मभाव विकसित किया है। 'सव्वभूअप्पभूअस्स' भगवान का यह विशेषण है ।
प्रभु कहते हैं कि तू यदि मेरे साथ तन्मय होना चाहता हो तो हे आत्मन् ! तू जगत के समस्त जीवों के साथ तन्मय बन ।'
प्रश्न : भगवान के साथ एकात्म बना जा सकता है, परन्तु समस्त जीवों के साथ एकात्म कैसे बना जा सकता है ?
उत्तर : मैं तो यहां तक कहता हूं कि समस्त जीवों में सिद्धों का रूप देखो, उसके बाद ही भीतर की गांठ खुलेगी । कुण्डली - उत्थान कोई सरल नहीं है, परन्तु चिन्ता नही, प्रारम्भ करेंगे तो किसी समय, किसी भव में अवश्य फलेगी । धैर्य चाहिए ।
. शशिकान्तभाई - आत्मा को जो जगाये, सम्हाले वह
आज्ञा है ।
नमो अरिहंताणं (अरिहंत + आणं) पांचों परमेष्ठियों की आज्ञा को भी नमस्कार ।
आर्हत्यमयी चेतना ही समस्त कारणों का परम कारण है। वही सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमयी, सर्वअन्तर्यामी, सर्व क्षेत्र-काल-व्यापिनी है । इसीलिए वह मधुर परिणाम लाती है ।
इस नवकार में योगियों का योग, ध्यानियों का ध्यान, ज्ञानियों का ज्ञान, भक्तों की भक्ति तथा आराधकों की आराधना समाविष्ट हैं ।
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कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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