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की माला व्रत-स्नातक की डिग्री है ।
• चौदह पूर्व का समस्त सारभूत ज्ञान 'नवकार' है ।
है जिसे आप नमन करते हैं, वैसे बनते है । टी.वी. में जिसे नमन करते हैं वैसे बनते है ।
. नवकार के अक्षर पापों का दहन करते हैं, कृपा का स्पर्श और निर्भयता का आनन्द प्रदान करते हैं ।
. नवकार तपोधन-दृष्ट है । मंत्र का दर्शन तप से होता है । आर्ष शब्द (जो रचित नहीं है, परन्तु अनुभूत है) अणु शक्ति है, जिसका प्रयोग से विस्फोट होता है ।।
. युग-युग में साधक मंत्र के नये-नये अर्थ प्रस्फुटित करते रहते है परन्तु वे सदा परस्पर अविरोधी होते है ।
* मंत्रमें विज्ञान है (अनुभव ज्ञान); शरीर का पोषण : शरीर-बल, प्राण-बल, वाग् बल, बुद्धि-बल चतुर्विध शक्ति
है ।
प्रकर्षेण नवः प्रणवः । जिसमें प्रचुर नवीनता है, नित्य नया सृजन करने की क्षमता है, वह प्रणव है। 'प्रतिक्षणं यन्नवतामुपैति, तदेव रूपं रमणीयतायाः ।'
- कालिदास * एक अणु में सम्पूर्ण सौर मण्डल है, उस प्रकार नवकार के प्रत्येक अक्षर में ब्रह्माण्ड समाविष्ट है । जप के द्वारा विस्फोट होने पर ब्रह्माण्ड का रहस्योद्घाटन होता है ।
नवकार का जाप भाव-मन की शुद्धि करता है । (लेश्या शुद्धि) मंत्र में प्रचण्ड शुभ संक्रामक शक्ति है ।
. नवकार अन्तरात्मा में ज्ञान-दीपक प्रज्वलित करता है। ___ एक कमरे में एक हजार दीपक प्रज्वलित किये जायें तो प्रकाश हजारगुना होता है, परन्तु प्रकाश सब को समान मिलता
• भगवान दो प्रकार से हृदय में आते हैं - १. नेत्रों से - स्थापना - मूर्ति ।
२. श्रोत्र से - नाम - जाप । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ५२१)