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. चित्त नहीं लगता हो तो उच्चारण पूर्वक नवकार बोलो या पढो, निर्विकल्प रूप से गिनो, तो साक्षात् अरिहंत के साथ अनुसंधान होगा ।
. शास्त्र-मंत्रवित् बनने के लिए नहीं, आत्मवित् बनने के लिए नवकार की आराधना है । नवकार शास्त्र, मंत्र है उसी तरह आत्मा भी है।
- तीर्थयात्रा करनेवाला आत्मानुभूति नहीं करेगा तो द्रव्ययात्रा रहेगी।
. नवकार पूर्ण योग है । समस्त योग उसकी परिक्कमा करते है। कोई भी योग बाकी नहीं है ।
नवकार का 'पंच मंगल महाश्रुतस्कंध' यह सच्चा नाम है ।
नवकार मंत्र ही नहीं, मंगल भी है। परमेष्ठी मंगल के महाकेन्द्र है । प्रचण्ड अवतरण एवं प्रचंड संक्रामण शक्ति है ।
मां गालयति भवादिति मंगलम् । जो संसार से मुझे मिटा दे वह मंगल है । • पांच गुण :
१. परहित - चिन्ता : स्वस्थता देती है, स्वार्थी शीघ्र अस्वस्थ होता है। स्व की चिन्ता कितनी और 'पर' की चिन्ता कितनी ?
परहित-चिन्ता में कोई खर्चा नहीं है, फिर भी कठिन है ।
२. परोपकार : समृद्धि का उपादान कारण । धनाढ्यता परोपकार से ही सफल होती है ।
३. प्रमोदभाव : शिव मंगल तत्त्व प्रदान करता है । इन सब में मेरे समान ही स्वरूप है उस प्रमोदभाव से मैं जीवों के विशुद्ध चैतन्य की वाङ्मयी पूजा करता हूं, ऐसा भाव उत्पन्न होना चाहिये ।
४. प्रतिज्ञा : (सत्य का ढक्कन खोलती है) पांचों परमेष्ठी करेमिभंते की प्रतिज्ञा लेकर बने हैं ।
५. प्रशान्त अवस्था : समता - समाधि प्रदान करती है।
भगवान का यह शंखनाद है : आपको क्या चाहिये ? जो चाहिये वह गुण पकड़ लो ।।
विद्या-स्नातकों का नहीं, व्रत-स्नातकों का यहां काम है। उपधान
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