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बाबुभाई (पूर्व वित्तमंत्री, गुजरात) व गांगजीभाई द्वारा गुरु-पूजन, वांकी (कच्छ), वि.सं. २०५५
६-११-१९९९, शनिवार का. व.द्वि. १३
✿ हम एक आज्ञा-भंग करे, हमें देखकर अन्य व्यक्ति आज्ञा भंग करे, तीसरे व्यक्ति भंग करे, एक परम्परा खड़ी होती है, इसे अनवस्था कहा जाता है ।
हमारी शिथिलता हमें ही नहीं, अन्य को भी उल्टा आलम्बन देती है ।
स्वभाव से हमें कोमल बनना है, परन्तु आचार में हमें उग्र बनना है ।
भगवान वैसे समस्त जीवों के प्रति कोमल है, परन्तु कर्मों के प्रति क्रूर है, उग्र हैं ।
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✿ 'अरिहंताइसामत्थओ ।'
यहां पंचसूत्र में अरिहंत आदि के सामर्थ्य से यह कहा है यहां 'आदि' किस लिए ? अरिहंत तो सर्वज्ञ, वीतराग हैं । आचार्य, उपाध्याय, साधु, सर्वज्ञ वीतराग कहां हैं ? ऐसे प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि आचार्य, उपाध्याय, साधु भी अंश में सर्वज्ञ है, वीतराग हैं, क्योंकि यह उनकी भावी अवस्था है ।
'एसो पंचनमुक्कारो' पांचों को किया गया नमस्कार समस्त पापों (कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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