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आत्मा में परमात्मा की योग्यता है, संग्रह ने सर्व प्रथम यह समाचार दिया ।
संग्रय नय से साध्य की प्रतीति होती है । शब्द नय से उसकी अनुभूति होती है । एवंभूत नय से सिद्धि होती है । साधना के लिए नैगम एवं व्यवहार नय लागू होते है ।
व्यवहार से यदि आत्मा को अशुद्ध नहीं मानें तो साधना कैसे होगी ? मैं विषय-कषायों से परिपूर्ण हूं, ऐसा नहीं मानें तो साधना होगी ही नहीं ।
तीर्थ की स्थापना आदि व्यवहार नय से होते है । संग्रह नय तो पूर्ण ही मानता है। उसके लिए तीर्थ क्या ? स्थापना क्या ? और साधना क्या ?
औदयिक भाव का आक्रमण हो तब कैसे बचा जाये ? यह सब व्यवहार नय सिखाता है ।
चार भावनाओ मैत्री एटले निर्वैर बुद्धि, समभाव. प्रमोद एटले गुणवानोना गुण प्रत्ये प्रशंसाभाव. करुणा एटले दुःखीजनो प्रत्ये निर्दोष अनुकंपा. माध्यस्थ्य एटले अपराधी प्रत्ये पण सहिष्णुता.
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १
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