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अभ्यस्त संस्कार हम पर सवार हो जाते हैं ।
और, मोक्ष में कहां हमें शीघ्र जाना है ? शान्ति से बैठे हैं । यदि मोक्ष में शीघ्र जाना हो तो सुविहित अनुष्ठानों में कितना वेग आयेगा ?
आप इतना अच्छी तरह समझ रखो कि मोक्ष-प्राप्ति में जितना विलम्ब होगा, दुर्गति के दुःख उतने अधिक होंगे ।
एक बार दुर्गति में जाने के बाद मानव बनकर ऐसी सामग्री मिलना हाथ की बात नहीं है।
___होगा, क्या उतावल (शीघ्रता) है ?' ऐसे विकल्प कायरों के मन में आते हैं, शूरवीर के मन में नहीं । धर्म का मार्ग शूरवीरों का है।
इस समय आठ कर्मों का उदय एवं सात कर्म का बंध चालु है । आयुष्य के समय आठ कर्मों का बंध होता है ।।
कर्मों का आक्रमण हो रहा हो और हम निश्चिन्त बनकर नींद करते रहें तो कैसे चलेगा ? क्या सिर्फ बैठे-बैठे विजय प्राप्त हो जायेगा ? क्या नींद में पड़ा सैनिक विजयी बन जायेगा ?
शिस्त पालक सावधान सैनिक विजयश्री प्राप्त कर सकेगा, उस प्रकार सावधान साधक विजयमाला पहन सकता है । यहां प्रमाद नहीं चलता ।
. भले ही समस्त आगम-शास्त्र न पढ सकें, परन्तु अमुक रहस्यपूर्ण शास्त्र तो खास चाहिये । • प्रभुदास बेचरदास कृत 'आनंदघन चौबीसी' के अर्थों की पुस्तक देख लेना । उसमें पूरा नक्शा बताया है कि उसमें मार्गानुसारी से लगा कर अयोगी गुणस्थानक तक का विकासक्रम कैसे रखा हुआ है ?
ऐसी - ऐसी कृतियां तो कण्ठस्थ होनी चाहिये । . दो प्रकार की परिज्ञा है - १. ज्ञपरिज्ञा : जानना... ग्रहणशिक्षा. २. प्रत्याख्यान परिज्ञा : जीना... आसेवनशिक्षा.
. जिन गुणों का आप विनियोग नहीं करते, वे गुण भवान्तर में साथ नहीं चलेंगे । जो आप दूसरों को देते हैं वही आपका है। ४९८ ******************************
**** कहे कलापूर्णसूरि - 3
कहे