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नाम या रूप अपने नहीं है, पराये हैं। हम फोटो या नाम का प्रचार करते हैं, परन्तु वे सब 'पर' हैं ।
नाम तो केवल संकेत के लिए है । एक नाम वाले अनेक व्यक्ति होते हैं, फिर भी अपने नाम के लिए हम कितने लड़ते हैं ?
आपके पड़ोसी को कोई व्यक्ति गालियां दे जाये तो क्या आप क्रोधित होओगे ?
नाम एवं रूप हमारे पड़ोसी हैं । हमारी आत्मा तो भीतर बैठी है; नाम एवं रूप से पर !
नाम एवं रूप तो अपने पड़ोसी है । उनका अपमान होने पर झगड़ा करें वह हमारे लिए शोभनीय नहीं है ।
भीतरी ऐश्वर्य को प्रकट करने की रुचि समकित है । उसके लिए उपायों में आंशिक प्रवृत्ति करना देशविरति है और सर्व शक्तिपूर्वक प्रवृत्ति करना सर्व विरति है ।
१. नैगम : जिसके अनेक गम-विकल्प हों वह । संकल्प, आरोप एवं अंश को ग्रहण करे वह ।
१. संकल्प : लकड़ी की पाईली (अनाज नापने का एक लकड़ी का साधन) बनाने के उद्देश्य से कोई जंगल में लकड़ी काटने के लिए जायेगा, परन्तु कहेगा 'मैं पाईली लेने जा रहा हूं।'
पालीताना संघ का प्रथम पड़ाव है, फिर भी हम कहते हैं - हम पालीताना जाते हैं ।
आपको मोक्ष की इच्छा हो गई । बस, नैगमनय कहेगा - यह मोक्ष का यात्री है
२. आरोप : उदाहरणार्थ आज भगवान का निर्वाण कल्याणक है। यहां भूतकाल का वर्तमान में आरोप हुआ है ।
३. अंश : आठ रुचक प्रदेश ही खुले हैं, फिर भी आत्मा पूर्ण-स्वरूपी माना जायेगा । मनफरा के चार आदमी ही आये, फिर भी कहा जायेगा कि पूरा मनफरा आया । रसोई शुरू ही हुई है फिर भी कहा जायेगा कि रसोई हो गई ।
२. संग्रह : वस्तु के सामान्य धर्म का संग्रह ही संग्रह है। संगृह्णाति वस्तु सत्तात्मकं सामान्यं सः संग्रहनयः ।
(४९६ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)