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प्रश्न : अभी कुछ ऐसा दिखता नहीं है ।
उत्तर : स्वाध्याय ही छोड़ दिया, फिर क्या दिखेगा ? वस्त्र पहनने ही छोड़ दिये हों उसके वस्त्र क्या मैले होंगे ? क्या फटेंगे ?
अविधि से किये गये स्वाध्याय आदि से रोग आदि तो आते ही हैं, वह भविष्य में चारित्र-धर्म से भ्रष्ट भी हो सकते हैं । इससे अधिक क्या हानि होगी ?
✿ विषय कषाय संसार है । सामायिक संसार से पार है । सामायिक तीन प्रकार के सामायिक गया तो सब गया ।
हैं
एकबार 'सर्वज्ञ कथित सामायिक धर्म' पुस्तक तो पढिये । सामायिक से सम्बन्धित पूरी सामग्री उसमें गुजराती में है । अब उस पर भी वाचना रखनी पड़ेगी ।
✿ लघु जघन्य ।
गुरु मध्यम ।
गुरुतर उत्कृष्ट
अविधि के ये तीन दोष क्रमशः जानें । थोड़ी अविधि हो जाय तो उन्माद, रोग आदि थोड़े प्रमाण में होते हैं । अविधि बढने पर उन्माद आदि की भी वृद्धि होती जाती है
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उत्तराध्ययन आदि सूत्र पर्याय के अनुसार किये जाते हैं । पढनेवाले और पढानेवाले दोनों अखण्ड चारित्रवान् होने चाहिए । यहां पुनः योग्यता की बात क्यों लाये ? दीक्षार्थी
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प्रश्न
की योग्यता के समय योग्यता की बात आ गई ।
सम्यक् श्रुत एवं चारित्र ।
उत्तर दीक्षा ग्रहण करने के बाद भी भाव गिर सकते हैं ।
दीक्षा ग्रहण करने के समय धोखा हो गया हो । संसार से उसे शीघ्र छूटना हो, अतः दोष छिपाकर रखे हों, फिर उनका पता लगता है ऐसा भी होता हैं । ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को सूत्र आदि नहीं दिये जा सकते ।
प्रवज्या दी हो तो मुण्डन नहीं होता । मुण्डन हो गया हो तो बड़ी दीक्षा नहीं दी जाती ।
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**** कहे कलापूर्णसूरि - १