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तारादेवी सिद्धार्थ (भूतपूर्व आरोग्यमंत्री काटक)
पूज्यश्री के दर्शनार्थ, दि.१४-८-१९९५
२-१०-१९९९, मंगलवार
का. व. १०
- स्वाध्याय का सातवां फल परोपदेश - शक्ति है ।
हमने स्वयं ने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया हो, ज्ञान के फल उपशम से स्व-आत्मा को भावित किया हुआ हो तो ही पर-उपदेश के लिए क्षमता प्राप्त कर सकेंगे और हमारा उपदेश प्रभावशाली बन सकेगा ।
ऐसा साधक जहाज की तरह स्वयं भी पार होगा और दूसरों को भी पार करेगा ।
तीर्थंकर इसके उत्तम उदाहरण है ।
- माता-पिता की सेवा करने वालों को उनकी सम्पत्ति प्राप्त होती है, तो भगवान की भक्ति करनेवालों को क्या भगवान की सम्पत्ति प्राप्त नहीं होगी ? माता-पिता की सम्पति शायद न भी प्राप्त हो, परन्तु भगवान की सम्पत्ति तो अवश्य ही प्राप्त होगी ।
. कोई भी ज्ञान पास रखने के लिए नहीं होता, दूसरों को देने के लिए ही होता है । यदि दूसरों को नहीं दोगे तो उस ज्ञान को जंग लग जायेगा।
धन नहीं देनेवाला कृपण (कंजूस) गिना जाये तो ज्ञान नहीं देनेवाला क्या कृपण नहीं गिना जायेगा ?
दूसरों को देने से ही अपना ज्ञान बढता है । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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