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उन्हें अन्य कार्यों में लगा दी । आपके पत्र को आप दसरे की दुकान पर कार्य कराके क्या दूसरे को कमाई करने दोगे ? हम ऐसा ही करते हैं। हम आत्म-शक्ति का प्रयोग कर्म-बन्धन में ही करते हैं ।
आत्मरतमुनि... ज्ञान के द्वारा जानते है, देखना - दर्शन दर्शन के द्वारा देखते है, जानना - ज्ञान चारित्र के द्वारा रमण करते है, जीते है; जीना... चारित्र ।
आत्मा की दान, लाभ, भोग, उपभोग एवं वीर्य - इन पांच शक्तियों को (जो पांच अन्तराय के नाश से उत्पन्न होती है) साधक काम में लगाता है ।
ज्ञानके लिए वीर्य-शक्ति काम में लगती है। वीर्य-शक्ति के लिए ज्ञान काम में लगता है, इस प्रकार आत्मगुण परस्पर सहायक बनते हैं ।
मुनित्व आत्मगुण प्रकट करने के लिए है ।
मुनि का ही यह विषय है और वही यदि यह न कर सके तो कौन करेगा ?
पदवी के लिए स्थान-निर्णय की घोषणा :
आज पदवी के प्रसंग हेतु भद्रेश्वर, वांकी, आधोई, मनफरा, कटारिया आदि स्थानों से विनतियां आई हैं । यह पदवी का प्रसंग दक्षिण में होने वाला था । ए. डी. महेता ने वहां कई बार कहा था, 'आप वहीं दक्षिण में ही पदवी दे दें ।'
परन्तु मेरा विचार यह कि जिस भूमि के प्रति लगाव है, जिनका प्रेम मिला है, उस कच्छ की भूमि को कैसे भूलें ? इसीलिए मैंने उन्हें अप्रसन्न करके भी पदवी का प्रसंग कच्छ के लिए सुरक्षित रखा ।
आप सब मिलकर एक स्थान तय कर देते तो बहुत अच्छा होता, परन्तु वह सम्भव नहीं हुआ । आपने मुझ पर डाला । मेरा स्वभाव है कि मैं भगवान पर डालूं ।
मैं जो निर्णय सुनाऊं, उसका आप स्वागत करना, नाराज मत होना ।
सभी लोग बारह नवकार गिनो (बारह नवकार के बाद) स्थान
-४८२ ****************************** कहे