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ही श्रेयस्कर है।
. स्वाध्याय से होनेवाले लाभ : आत्महित का ज्ञान, अहित से निवृत्ति ।
लाभ-हानि व्यापारी जानता है उस प्रकार साधु आत्मा का हित-अहित जानते है ।
हिंसा, असत्य आदि अहितकर हैं । अहिंसा, सत्य आदि हितकर हैं । इतनी बात निरन्तर दृष्टिगत रखकर साधु को जीवन जीना है ।
छ: जीव निकाय में स्व आत्मा का दर्शन न हो तब तक दीक्षा ग्रहण करने के लिए योग्यता उत्पन्न हुई नहीं गिनी जायेगी । इसीलिए बड़ी दीक्षा से पूर्व चार अध्ययन सीखने आवश्यक हैं ।
. समाधि अर्थात् चित्त की प्रसन्नता ।।
विनय, श्रुत, तप एवं आचार से चित्त की प्रसन्नता बढती है, इसीलिए दशवैकालिक में उन्हें समाधि कहा है - विनय - समाधि, श्रुतसमाधि आदि । विनय समाधि का कारण हैं अतः विनयसमाधि । गुरु का विनय नहीं करने वाले कूलवालक, गोशालक क्या समाधि प्राप्त कर सकते हैं ?
विनय का फल समाधि है । अविनय का फल है संयम से पतन ।
विद्या से नहीं, विनय से मनुष्य की शोभा बढती है। अविनीत धनाढ्य भी सुशोभित नहीं होता । विनय न हो तो धीमंत (बुद्धिमान) भी सुशोभित नहीं होता । सभी गुण विनय के साथ हो तो ही सुशोभित होते हैं ।
. जिसे चारित्रनिष्ठ बनना हो उसे नित्य स्वाध्याय करना ही है । ज्ञान के महत्त्व के लिए ही बीस-स्थानक में तीन स्थान ज्ञान के लिए बताये हैं । ज्ञानसार में ज्ञान, विद्या, अनुभव ये तीन अष्टक ज्ञान के लिए हैं। ___ नये-नये भाव जानने से स्वाध्याय में मग्न मुनि का चित्त प्रसन्न होता रहता है ।
__कमाई के समाचार प्राप्त होने पर आप प्रसन्न होते हैं, उस प्रकार ज्ञानी ज्ञान-वृद्धि से प्रसन्न होते हैं ।
ज्ञान से श्रद्धा बढती है । जानने के बाद उस पदार्थ पर अपना
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कहे व