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तूर निध-प्रसंग, वि.सं. २०५१ ।
३१-१०-१९९९, रविवार
का. व. ८
धर्म-कार्य में प्रोत्साहित करनेवाले ज्यों ज्यों बढते हैं. त्यों त्यों वह अधिक फलदायक बनता हैं । मजदूर लोग भारी शिला अथवा चट्टान मुंह से आवाज कर-करके चढाते हैं, युद्ध में सैनिक भी रण-भेरी सुनकर जोश में आ जाते हैं, उस प्रकार भाविकगण भगवान के वचन सुनकर उत्साहित बनते हैं ।
निष्णात वैद्य देह की शुद्धि-पुष्टि करता है, उस तरह छ: आवश्यक भी आत्मा की शुद्धि-पुष्टि करते हैं ।
साधु का धन ज्ञान है । गृहस्थ धन उपार्जन करने के लिए कितना श्रम करते हैं ? उससे भी अधिक परिश्रम ज्ञान उपार्जन करने के लिए साधु करते है । ज्ञान, श्रद्धा आदि ही साधु का धन है । विद्या का लालची बनना बुरा नहीं है ।
. धन साथ नहीं आता, ज्ञान भवान्तर में भी साथ आयेगा । बाकी याद रखें कि दांतो में लगा हुआ सोना भी लोग निकाल लेंगे ।
__ चंचल लक्ष्मी के लिए इतना समय (समय ही जीवन है) बिगाड़ने की अपेक्षा अमर लक्ष्मी के लिए प्रयत्न करना (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ४७९)