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उत्तर - भवितव्यता का विचार दूसरों के लिए किया जा सकता है, स्वयं के लिए नहीं; अन्यथा पुरुषार्थ गौण बन जायेगा । अपने भूतकाल के लिए भवितव्यता लगाई जा सकती है। प्रथम से ही भवितव्यता स्वीकार कर लें तो धर्म या धर्मशास्त्रों का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा । गोशालक मत आकर खड़ा हो जायेगा ।
मैं धर्म में भवितव्यता लगानेवालों को पूछता हूं कि क्या आप व्यापार में भवितव्यता लगाते हैं ? क्या आप भोजन में भवितव्यता लगाते हैं ?
नियति की बात कहकर अनेक व्यक्ति पुरुषार्थहीन बन गये हैं ।
समझाने पर भी आप न मानें तो मैं भवितव्यता का दृष्टिकोण अपना सकता हूं । आप स्वयं अपने लिए नहीं अपना सकते ।
अतः क्या आपको स्वाध्याय करने की प्रतिज्ञा दूं ? कि नये वर्ष में दूं ?
कुछ नया पढोगे ? भूल जाने के भय से नया पढना छोड़ मत देना । चाहे वह भूल जाये, परन्तु उसके संस्कार भीतर बनें रहेंगे ।
जितने सूत्रों के अर्थ दृढ-रूढ बनाओगे, उतने संस्कार गहराई में उतरेंगे ।
'नमुत्थुणं' भी मुझे कितना काम लगता है ? निर्भयता, चक्षु, मार्ग आदि बतानेवाले भगवान सिर पर बैठे हैं, मुझे क्या चिन्ता है ? न कभी किसी ज्योतिषी को कुण्डली बताई है, न कभी भविष्य की चिन्ता की है । यह शक्ति कौन प्रदान करता है ? अन्तर में बैठे भगवान ।
. संसारी आदमी धन व्यय करके ख्याति प्राप्त करते हैं । हम थोड़ा ज्ञान प्रदर्शित करके ख्याति प्राप्त करते हैं । फर्क क्या पड़ा ?
हमारा ज्ञान प्रदर्शक नही, प्रवर्तक होना चाहिये । यह बात मैं अनेकबार कह चुका हूं ।
. आगमों की केवल पूजा नहीं करनी है, उसका पठन एवं अध्ययन करना है, समझना है। आगे बढकर तदनुसार जीवन भी जीना है।
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