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है । उन्हें कैसे भूल सकते हैं ? पूर्वभव के वैयावच्च के कारण ही उन्हें आरीसाभुवन में (सीसमहल में) केवलज्ञान प्राप्त हुआ था ।
दीक्षा बिना ही उन्हें केवलज्ञान मिल गया था तो दीक्षा की आवश्यकता क्या ? ऐसा मत समझना । उनकी पूर्वभव की साधना को याद करना ।
महावीर स्वामी का जीवन चरित्र पढने पर केवलज्ञान कितना दुष्कर, कितना महंगा लगता है ? भरत का जीवन पढने पर कितना सस्ता लगता है ?
अत: यह न भूलें कि केवलज्ञान को इतनी सरलता से देने वाला वैयावच्च है ।
चक्रवर्ती आदि भौतिक फल तो आनुषंगिक है । वैयावच्च का मुख्य फल केवलज्ञान है, मोक्ष है। इसीलिए अनुकम्पा निषिद्ध नहीं है और न वैयावच्च भी निषिद्ध है ।
मुक्ति के दो मार्ग हैं : १. अनुकम्पा - शान्तिनाथ का पूर्वभव - मेघरथ । २. वैयावच्च - बाहु-सुबाहु (भरत-बाहुबली) अनुकम्पा आदि का प्रयत्न रहित सामान्य मार्ग । प्रथम मार्ग तीर्थंकरो आदि उत्तम जीवों का है । दूसरा मार्ग सामान्य साधुओं का है ।
पूज्य देवचन्द्रजी कृत अध्यात्मगीता 'प्रणमिये विश्वहित जैन वाणी, महानंदतरु सींचवा अमृतपाणी; महामोह पुर भेदवा वज्रपाणि, गहनभव फंद छेदन कृपाणी. (१)'
तीर्थंकरों को नमन करने से तो मंगल होता ही है, तीर्थंकरों की वाणी को नमन करने से भी मंगल होता है।
भगवती में 'नमो सुअस्स' 'नमो बंभीए लिवीए' कहकर मंगल किया है ।
यह प्रणाली आज भी सुरक्षित है। आगम को हम सब नमन करते हैं ।
जिनवाणी को नमन परम मंगल है । जिनवाणी सम्पूर्ण विश्व को हितकर है ।
जिनवाणी में से एक शब्द भी ऐसा खोज निकालो, जिससे कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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