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जीवन का लक्ष्य परमात्म-पद बन गया हो, प्रभु के प्रति प्रेम जागृत हुआ हो तो नवपद इसमें अत्यन्त सहायक हैं । जिसे हम प्रेम करते हैं वह प्रभु, परिवार सहित इस नवपद में है ।
जिस मोक्ष में जाना है वे सिद्ध यहां (नवपद में) हैं, जो बनकर साधना करनी है वे साधु आदि इसमें है, जिनकी हमें साधना करनी है वे दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप यहां है ।
अब चाहिये क्या ? नवपद की दोस्ती प्रिय लगेगी ?
हम तो चोर-डाकुओं तुल्य विषय-कषायों के साथ दोस्ती करके बैठे हैं । इस मित्रता के कारण भूतकाल में अनेकबार नरक-निगोद की यात्रा की है। यदि अभी तक यह दोस्ती नही छोडेंगे तो यही हमारा भविष्य है ।
इन डाकुओं के निवारणार्थ कोई (गुरु आदि) समझाये तो हम उस पर क्रोधित हो जाते हैं ।
जो भलाई नवपदों ने की है वह कोई नहीं कर सकेगा । जो अहित विषय-कषायोंने किया है वह कोई नहीं कर सकेगा । किसकी मित्रता करनी है वह हमें सोचना है ।
. प्रश्न : इन दिनों में असज्झाय क्यों ?
उत्तर : क्योंकि नवपद की आराधना बराबर हो सके, मंत्र आदि का जाप बराबर हो सके, ऐसा समझ लो ।
- गुरु के पास घंटा बिगड़ा हुआ नहीं कहा जायेगा । उस एक घंटे में अनुभव की अनेक बातें जानने को मिलेंगी, जो अन्यत्र कहीं से भी नहीं मिलेंगी, नवपदों की आराधना में समय बिगड़ा नहीं कहा जायेगा । इसी आराधना में जीवन की सफलता
. प्रभु मन में हो तो उसे चंचल बनानेवाला एक भी तत्त्व भीतर प्रविष्ट नहीं हो सकेगा । जब सिंह बैठा हो तो सियार आदि की क्या ताकत है जो गुफा में प्रवेश कर सके ?
हमारी हृदय गुफा में सिंह सम भगवान बैठे हों, तो हम निर्भय । भगवान चले जायें तो हम भयभीत ।
भगवान के जाते ही भय आ जाता है ।
भगवान के आते ही भय भाग जाता है । (कहे कलापूर्णसूरि - १ **
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