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पदवी-प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३
२५-१०-१९९९, सोमवार
का. व. १
भावशुद्धि के लिए नवपदों का आलम्बन है । नवपद में समग्र जिनशासन है । क्योंकि जिनशासन नवपद स्वरूप ही है ।
पूज्य हेमचन्द्रसूरि कहते है - _ 'त्वां त्वत्फलभूतान् सिद्धान्, त्वच्छासनरतान् मुनीन् ।
त्वच्छासनं च शरणं, प्रतिपन्नोऽस्मि भावतः ॥' । हे भगवन् ! मैं तेरी ही शरण लेता हूं । तेरे शरण में शेष तीनों शरण आ जाते हैं ।
तेरा, तेरे फलरूप सिद्ध, तेरे शासन में तत्पर मुनि और तेरे शासन की शरण मैं ग्रहण करता हूं ।
प्रभु के शासन में दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप आ गये । मुनि में आचार्य, उपाध्याय और साधु आ गये ।
एक अरिहंत में भी सम्पूर्ण जिनशासन आ जाता है तो नवपद में तो सब कुछ आ जाता है ।
यह चिन्तन केवल नौ दिनों के लिए नहीं है, अरे... इस भव के लिए नहीं हैं, जब तक मुक्ति नहीं मिले तब तक यह पकड़ रखना है ।
* कहे कलापूर्णसूरि - १
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कहे