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व्यवहार चारित्र का चुस्तता से पालन करें तो निश्चय चारित्र (भाव चारित्र) प्राप्त होता है ।
स्वर्ण द्रव्य पास हो तो माल मिलता है । उस प्रकार यहां भी द्रव्य चारित्र से भाव चारित्र प्राप्त होता है ।
द्रव्य चारित्र में 'द्रव्य' कारण अर्थ में है । द्रव्य दो प्रकार के हैं - (१) प्रधान द्रव्य (२) अप्रधान द्रव्य ।
प्रधान द्रव्य वह है जो भाव का कारण बनता है । अपना चारित्र प्रधान द्रव्य हो तो भाव चारित्र प्राप्त हुए बिना नहीं रहता । जिस प्रकार दीपक जलाओ तो प्रकाश मिले बिना नहीं रहता । कोड़िया, तेल, दीवट आदि द्रव्य कहलाते हैं, उसकी ज्योति भाव कहलाती है ।
आत्मा, आत्मा के द्वारा आत्मा में शुद्ध स्वरूप देखे, जाने एवं अनुभव करे वे क्रमशः दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र हैं ।
तपपद 'कम्मदुमोम्मूलण - कुंजरस्स, नमो नमो तिव्व - तवोभरस्स ।' कर्म - वृक्ष को उखाड़ने में तप हाथी के समान है । उस तप-धर्म को नमस्कार हो, नमस्कार हो !
. चक्रवर्ती का चक्र छ: खण्डों को ही विजय करता है, सिद्धचक्र तीन लोक की विजय करता है ।।
'कहे कलापूर्णसूरि' नामनुं पुस्तक मळ्यु. मात्र एक ज पार्नु वांच्यु. ने वांच्या पछी एम ज लाग्युं के साक्षात् परमात्मा मिलन आ ज पुस्तकमां छे.
- आचार्य विजयरत्नाकरसूरि
समेतशिखरजी तीर्थ.
कहे
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