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वर्तमान में केवलज्ञान का विरह है, श्रुतज्ञान का नहीं । लेकिन चिन्ता न करें । यदि प्राप्त श्रुतज्ञान को अच्छी तरह पकड़ कर रखेंगे तो केवलज्ञान अपने आप मिलेगा । केवलज्ञानी भी श्रुतज्ञान के द्वारा ही देशना देते हैं ।
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श्रुतज्ञान का आदान-प्रदान हो सकता है, केवलज्ञान का नहीं । प्रश्न - उच्चारणपूर्वक गाथा कण्ठस्थ करनी कि मौनपूर्वक ? उत्तर गाथा उच्चारणपूर्वक कण्ठस्थ की जाती है । प्रतिक्रमण आदि भी उच्चारणपूर्वक ही करते हैं न ? एक बोले तो भी दूसरे को अनूच्चारण (अनु + उच्चारण) करना ही है, जो अभी हमने पंचवस्तुक में देखा है ।
सेठ को छींक आई । 'नमो अरिहंताणं' बोले और सुदर्शनाकुमारी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । यदि सेठ मन में 'नमो अरिहंताणं' बोले होते तो ?
परन्तु प्रातः जल्दी उठकर जोर-जोर से नहीं बोलें, इतना उपयोग
रखें ।
✿ 'भव्य नमो गुण ज्ञानने !'
ज्ञान आपकी आत्मा को तो उज्ज्वल करता ही है,
उससे दूसरों को भी उज्ज्वल कर सकते हैं ।
ज्ञान से जितना उपकार होता है, उतना दूसरे से नहीं होता । श्रुतज्ञान लिया - दिया जा सकता है, अन्य ज्ञान नहीं । इसीलिए श्रुतज्ञान के अलावा शेष चार ज्ञान मूक कहे गये हैं ।
ज्ञान गुण एक है, परन्तु पर्याय अनन्त है, क्योंकि ज्ञेय पदार्थ अनन्त हैं ।
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परन्तु आप
हम भगवान के ज्ञेय बने कि नहीं ? हमारे जितने पर्याय हैं वे भगवान के ज्ञान के पर्याय बन जायेंगे । अब वे पर्याय अच्छे बनाने या बुरे, यह हमें देखना है ।
यों तो भगवान के केवलज्ञान में हमारे सभी पर्याय प्रतिबिम्बित हो ही चुके हैं। फिर भी यह दृष्टि नजर के समक्ष रखेंगे तो अपना सुधार तीव्रता से होगा । केवलज्ञानी की नजर में मैं ऐसा बुरा दिखूं तो ठीक लगेगा ?
यह चिन्तन दोष - निरसन में कितना वेग उत्पन्न करेगा ?
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******* कहे कलापूर्णसूरि १