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. 'जे विण नाण प्रमाण न होवे, चारित्र तरु नवि फलियो.'
हमारे भीतर विद्यमान ज्ञान एवं चारित्र सम्यक्त्व की प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि वे सम्यक्त्व से ही उज्ज्वल हैं । सम्यक्त्व स्वर्ण-रस है, जिसके स्पर्श से अज्ञान ज्ञान बन जाता है और अचारित्र चारित्र बन जाता है ।
सम्यक्त्व रहित ज्ञान एवं चारित्र अर्थात् तलवार रहित म्यान । क्या केवल म्यान से युद्ध में विजय प्राप्त किया जा सकता है ?
बचवें केम ? मरणथी बचवा जोष जोवडावे तो बचाय ? रोग मुक्ति माटे जोष जोवडावे तो बचाय ? धन प्राप्ति माटे जोष जोवडावे तो धन प्राप्ति थाय ? संतान तृप्ति माटे जोष जोवडावे तो संतान प्राप्ति थाय ?
ए सर्व पूर्व प्रारब्ध पर आधारित छे. छतां शा माटे जीव जोष जोवडावे छे ? ए सर्व प्रकारोमां निराधारता छे एक धर्मनो आधार ज जीवने रक्षित करे छे.
कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ४३७)
कहे
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