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" काकटूर २४ तीर्थकर धाम-प्रतिष्ठा, वि.सं. २०५२, वैशाख
२२-१०-१९९९, शुक्रवार
आ. सु. १२-१३
निगोद से संयम तक पहुंचानेवाले भगवान ही हैं। हमारा पुन्य चाहे अल्प हो, भगवान का पुन्य प्रबल है । उत्तम कुल आदि में जन्म होना हमारे हाथ में था ? यह सब किसने जमाया ? कभी भगवान याद नहीं आते ?
गुरु, गुरुजन एवं समस्त जीवों का भी हम पर उपकार है । इतनी लम्बी दृष्टि न जाये तो कम से कम भगवान को तो याद करो ।
आप यह न सोचें कि मैंने अपने परिश्रम से यह सब प्राप्त किया या विद्वान बना । 'देव-गुरु पसाय' बार-बार बोलते हैं, यह हृदय से बोलना सीखें ।
धर्म का मूल्य ज्यादा कि उसे देनेवाले का मूल्य ज्यादा ? धन का मूल्य ज्यादा कि उसे देनेवाले का मूल्य ज्यादा ? हम देनेवाले को भूल जाते हैं । धन मिलने के बाद, देनेवाले को कौन पूछता है ? सब कुछ मिल जाने के बाद, भगवान को कौन पूछता है ? हेमचन्द्रसरिजी जैसे भगवान को कहते हैं - 'भवत्प्रसादेनैवाहमियती प्रापितो भुवम् ।'
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कहे व