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________________ प.प. श्री निमिते म आशीर्वाद देते हुए पूज्यश्री, चेन्नई (मद्रास), वि.सं. २०५० २१-१०-१९९९, गुरुवार आ. सु. ११ साधु : 'सोनातणी परे परीक्षा दिसे, दिनदिन चढते वाने; संयम खप करता मुनि नमीये, देशकाल अनुमाने. ' सब में नवपद की आराधना प्रधान है । नवपदों का आलम्बन सर्वश्रेष्ठ गिना गया है । गुजराती नवपद की ढालों, पूजाओं आदि का अन्तिम २५० वर्षों से अत्यन्त ही प्रचार हुआ । हीरविजयसूरि के समकालीन सकलचन्द्रजी, ३०० वर्ष पूर्व के उपाध्याय यशोविजयजी, उसके बाद के ज्ञानविमलसूरि तथा देवचन्द्रजी, इन सब महात्माओं की कृतियों का संकलन कर के नवपद पूजा बनाई गई हैं । ✿ स्वर्ण की चार प्रकार से परीक्षा होती है : कष, छेद, ताप और ताड़न । साधु की भी स्वर्ण की तरह परीक्षा की जाये तो शुद्ध होकर बाहर निकले । उनमें तप का तेज, श्रद्धा की निर्मलता, ज्ञान का प्रकाश बढते ही रहते हैं । साधु की संक्षिप्त नैश्चयिक व्याख्या (कहे कलापूर्णसूरि - १ ***** *** ४३३
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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