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मैं अपना जीवन चारित्र बनाता हूं ।
✿ 'नवविध ब्रह्मगुप्ति'
नौ ब्रह्मचर्य की गुप्ति, बारह प्रकार के तप में शूरवीर मुनि को तब ही वन्दन करने की इच्छा होती है, यदि पूर्वके पुण्य के अंकुर प्रकट हो चुके हों ।
पर्याय छोटा हो त्यों अधिक वन्दन प्राप्त होते हैं । अधिक वन्दन से अधिक आनन्द होना चाहिये ।
बीज तो गुप्त होता है, परन्तु अंकुर प्रकट दिखते हैं । साधु को वन्दन करने का अवसर प्राप्त हो तो समझ लें कि पुन्य के अंकुर फूट निकले हैं ।
परन्तु वन्दन अहमदाबादी जैसा नहीं चाहिये, राजा की बेगार के समान नहीं चाहिये ।
मैत्री आदि भावना ते माता स्वरूप छे
संतान प्रत्ये वात्सल्य भाव होय छे, ते मैत्रीभावना. माने संतानना विवेक आदि गुणो प्रत्ये प्रमोदभाव थाय छे. माने संतानना दुःख प्रत्ये करुणा उपजे छे ते करुणाभावना. संतान जो स्वच्छंदी बने तो मा जतुं करे छे ते माध्यस्थ्य भावना. जगतना सर्व जीवो प्रत्ये आवो भाव केळववानो छे.
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १