________________
पदवी-प्रसंग, पालीताणा, वि.सं. २०५७, मार्ग.सु.५
१९-१०-१९९९, मंगलवार
आ. सु. ९
यदि हमें साधक बनना हो तो इन तीनों (आचार्य, उपाध्याय, साधु) में से किसी एक के गुण प्राप्त कर लें तो काम हो जाये । अरिहंत, सिद्ध साध्य हैं । आचार्य, उपाध्याय, साधु साधक हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप साधन हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप की पराकाष्ठा सूरि में हैं ।
आचार्य 'तत्त्वताजा' कहे गये हैं । पुनरावर्तन के प्रभाव से उनका तत्त्व ताजा ही रहता है । उपाध्याय आदि सब को वे पढाते
सचमुच तो दूसरों का पढाना अर्थात् स्वयं पढना । इससे आगे बढकर जीवन में आ जाये वही सच्चा ज्ञान कहलाता है।
आचार्य द्रव्य, क्षेत्र, काल के अनुरूप देशना देते हैं । द्रव्य से व्यक्ति, क्षेत्र से देश, काल से समय, भाव से श्रोताओं के भावों को देखकर वे देशना देते हैं ।
आचार्य 'शुद्ध जल्पा' कहे गये हैं, अर्थात् शास्त्रानुसार बोलने वाले कहे गये हैं ।
जिस प्रकार भौंरा पुष्प का रस पान करता है, उस प्रकार (कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
१******************************४२३