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आचार्य परमानन्द का रस पान करते हैं । इसी कारण से वे ताजा हैं ।
आचार्य साध्य में अत्यन्त एकनिष्ठ होते हैं । वे चाहे जैसे विघ्नो में भी ध्येय-निष्ठा नहीं छोड़ते ।
✿ ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप में ज्यों ज्यों वीर्य लगायें, त्यों त्यों हमारा वीर्य बढता है, घटता नहीं ।
चलने से कभी पांव छोटे हुए हैं ? आज तक हम कितने किलोमीटर चले हैं ? क्या हमारे पांव छोटे हुए ? आंखों से कितना देखा ? क्या हमारी आंखे छोटी हुई ? चाहे जितना करो, शक्ति घटेगी नही, प्रत्युत बढेगी। उल्टा कार्य नहीं करोगे तो शक्ति घटेगी । पुष्प तोड़ना बंध करो
कुंए में से पानी खींचना बंध करो
गाय दोहना बंध करो
क्या होगा ?
वे देना बन्ध कर देंगे ।
काम करना बंध कर दो, आप को जंग लग जायेगा । अनेक दानवीर कहते हैं - 'देने से सम्पत्ति बढती ही जाती है, यह हमारा अनुभव है । इसीलिये हम देते ही रहते हैं ।' यह विनियोग का आनन्द है ।
'वर छत्रीस गुणे करी सोहे, युग-प्रधान मन मोहे; जग बोहे न रहे खिण कोहे, सूरि नमुं ते जोहे. '
युगप्रधान स्वरूप आचार्य ३६ गुणों से सुशोभित होते हैं, वे जगत् को प्रतिबोध देते रहते हैं और क्षणभर के लिए भी क्रोध नहीं करते ।
'नित्य अप्रमत्त धर्म उवएसे, नहीं विकथा न कषाय; जेहने ते आचारज नमिये, अकलुष अमल अमाय' आचार्य अप्रमत्त होकर देशना देते हैं, निन्दा या कषाय की बात नहीं है । वे माया - रहित निर्मल एवं निष्कलंक हैं ।
'जे दिये सारणग-वारण'
आचार्य शिष्यों को सारणा वारणा आदि के द्वारा सुमार्ग पर लाते हैं । पू. कनकसूरिजी महाराज इस प्रकार करते थे । प्रारम्भ ***** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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