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है ? क्या तेल पिया जा सकता हैं ? यदि अग्नि उष्णता त्याग दे तो ?
जगत् के कोई पदार्थ अपना स्वभाव नहीं बदलते । 'चंदन शीतलता उपजावे, अग्नि ते शीत मिटावे; सेवकना तिम दुःख गमावे, प्रभु-गुण प्रेम स्वभावे' प्रभु का स्वभाव है यह । यह नहीं बदलेगा ।
सहायता, साधना, सहनशीलता साधु का स्वभाव है । यह कैसे जा सकता है ? यदि जाये तो साधुता कैसे रहे ?
* जीव-दल पत्थर है । गुरु शिल्पी है।
निरर्थक भाग शिल्पी दूर कर देता है तब पत्थरमें से प्रतिमा बनती है । इसी प्रकार से विभावदशा दूर होने पर आत्मा परमात्मा बनती है।
घर में स्वच्छता कैसे आती है ? स्वच्छता बाहर से लानी नहीं पड़ती । वह तो भीतर ही है। केवल आप कचरा निकाल दें तो स्वच्छता हाजिर । आत्मा में से कर्म का कचरा निकालो तो परमात्मा हाजिर ।
अखबार, T.V. आदि आपको कचरा नहीं लगता ? पुराना कचरा तो है ही । फिर नया कचरा क्यों भरें ? __ आत्मा को शुद्ध बनायें, कचरा दूर करें तो सिद्ध हाजिर ।
हमें चाहे अपनी सिद्धता दृष्टिगोचर नहीं होती, परन्तु प्रभु हमारी स्वच्छता, हमारी सिद्धता देख रहे हैं ।
प्रभु कहते हैं - 'तू क्यों घबराता है ? तेरी सिद्धता मैं अपने ज्ञान से देख रहा हूं । तू केवल प्रयत्न कर ।'
. विषयों का ध्यान सहज है, प्रभु का ध्यान कभी नहीं किया । इसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है ।
जितने सिद्ध हुए हैं, वे सभी यहीं से वहां गये है। इस मनुष्यलोक के अलावा अन्य कहीं से भी वहां नहीं जाया जा सकता ।
वहां जाने की शर्त इतनी कि कर्म का अंश भी नहीं होना चाहिये । कर्म का एक अणु भी नहीं चलता । बोझवाले व्यक्ति का वहां काम नहीं है । कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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