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आप जिस क्षण कर्म का कचरा निकालोगे, उसी समय (अन्य समय भी नहीं । - 'समय-पएसंतर अणफरसे') उपर जाकर निवास करो ।
आत्मा कर्ममुक्त होकर ऊपर कैसे जाती है ? यह स्पष्ट करने के लिए चार दृष्टान्त दिये है :
(१) पूर्व प्रयोग : कुम्हार का चाक डण्डे से हिलाने के बाद स्वतः ही थोड़ी देर घूमता रहता है, उस प्रकार सिद्ध यहां से कर्ममुक्त होकर उपर जाते हैं । कर्म-मुक्त होना ही एक प्रकार का धक्का है, पूर्व प्रयोग हैं ।
(२) गति परिणाम : जीव का स्वभाव उपर जाने का है, जैसे अग्नि का स्वभाव उपर जाने का है ।
(३) बन्धन-छेद : एरंडिया का फल पकने पर जैसे उपर जाता है उस प्रकार कर्म मुक्त होने पर जीव उपर जाता है ।
(४) असंग : मिट्टी के संगवाला (लेपवाला) तूम्बा डूबता है, परन्तु मिट्टी का लेप निकल जाने पर वह जल की सतह पर आ जाता है; उस प्रकार कर्म का लेप निकलने पर जीव उपर जाता है ।
- सिद्धों का सुख कैसा ? उपमा नहीं दी जा सके ऐसा । जन्म से ही जंगल में निवास करनेवाला भील शहर में राजा के सुख का आनन्द लेकर पुनः घर आये तो वह उस सुख का वर्णन कैसे कर सकता हैं ? ऐसी ही दशा ज्ञानियों की होती है, जानते हैं परन्तु बोल नहीं सकते ।
ऐसे सिद्धों की झलक योगी ध्यान-दशामें कभी-कभी देख लेते हैं।
उन सिद्धों का ध्यान होने से हमें समाधि प्रतीत होती है ।
अरिहंत का ध्यान अरिहंत बनाता हैं उस प्रकार सिद्धों का ध्यान सिद्ध बनाता हैं ।
__ ऐसे सिद्धों का ध्यान कैसे हो सकता है ? उनके गुणों, प्रतिमाओं, 'नमो सिद्धाणं' आदि पदों का आलम्बन लेने से हो सकता है।
* ध्याता ध्येय ध्यान ज्ञाता ज्ञेय ज्ञान
४२० ****************************** कहे
** कहे कलापूर्णसूरि - १