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पदवी-दीक्षा-प्रसंग, पालीताणा, वि.सं. २०५७, मार्ग.सु.५
१८-१०-१९९९, सोमवार
आ. सु. ८
सिद्धचक्र की आराधना परमपद प्रदान करती है । क्योंकि नवपद स्वयं परम पद हैं ।
* ध्यान-विचार में सात प्रकार की चिन्ताएं है : प्रथम तत्त्व-चिन्ता में जीवादि तत्त्व चिन्ता आती हैं । परम तत्त्व चिन्ता में पंच परमेष्ठी भगवंत आते हैं ।
• तीर्थंकर भी इन नवपदों का सम्पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते, क्योंकि वाणी परिमित है, उनके गुण अपरिमित हैं ।
. ध्यान, अभ्यास - साध्य की अपेक्षा कृपासाध्य ज्यादा है। जिसका ध्यान प्रभु में लग जाये, उसे प्रभु की कृपा समझनी चाहिये ।
. स्थूल दृष्टि से सिद्ध सिद्धशिला पर हैं । निश्चय से सिद्ध अपनी आत्मा में विद्यमान हैं ।
आठ कर्मों का क्षय हो जाने से वे अव्याबाध सुख में लीन रहते हैं।
संसारी जीवों को अकेला दुःख है, क्योंकि ज्ञानियों की दृष्टि में सुख (साता) भी दुःख ही है। साता में प्रतीत होता सुख परिणामतः तो दुःखरूप ही हैं । दुःख के समय यह विचार नहीं आता कि कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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