________________
समस्त द्रव्य अपनी मर्यादा में ही रहते हैं । पुद्गल चाहे हमें लिपटा हुआ है, परन्तु पुद्गल के साथ मिलावट कभी नहीं होती । आत्मा पुद्गल नहीं बनती, पुद्गल आत्मा नहीं बनता ।
यह बात नहीं समझते हैं इसीलिए हम भयभीत हैं । यह बात हम अभी नहीं समझेंगे तो कब समझेंगे ? हम कब तक तत्त्वज्ञान से रहित रहेंगे ?
'द्रव्य क्रिया रुचि जीवड़ा रे, भावधर्म रुचिहीन; उपदेशक पण तेहवा रे, शुं करे लोक नवीन ?
- पू. देवचन्द्रजी क्या करें ? काल ही ऐसा है, इस प्रकार काल पर भी दोष न मढें । यह आत्म-वंचना होगी ।।
आत्मज्ञाननी प्राप्ति केवी रीते थाय ? पूज्यश्री : जेम झवेरात झवेरीनी दुकानेथी मळे तेम आत्मज्ञान गुरुगम वडे मळे. ते माटे गुरुजनो प्रत्ये अत्यंत बहुमान जोईए. गुरुजनोना बहुमान वगरनुं ज्ञान जीव पतन करावे, गर्व करावे. गुरुजनो आ जन्मे के अन्य जन्मे तीर्थंकरनो योग करी आपे तेवी चावी आपे छे. जे मोक्षनुं कारण बने छे.
(४१६ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १
४१६
******************************
कहे