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कई बार तो मैं किसी को मांगलिक सुनाने जाने के लिए तैयार होउं और समाचार मिलता है कि वे भाई तो स्वर्गवासी हो गये ।
जीवन का क्या भरोसा है ? यह जीवन बुदबुदा है।
बुदबुदे को फूटने में क्या विलम्ब ? बुदबुदा फूटे उसमें नहीं, वह टिका रहे यही आश्चर्य हैं ।
इसीलिए कहता हूं कि शीघ्र साधना कर लो । जीवन अल्प है, पलपल में आयुष्य घट रहा हैं ।
इस जीवन में दोषों को निकाल दो । यदि कुत्ता नहीं जाये तो आप उसे कैसे निकाल देते हैं ? इसी प्रकार से दोषों को निकालो, यही वास्तविक साधना है ।
यदि यह साधना इस जीवन में नहीं करोगे तो फिर कब करोगे ?
* अन्त समय में सिद्ध होने वाले जीव की दो-तिहाई अवगाहना रहती है। तीन हाथ की काया होगी तो दो हाथ रहेगी ।
सिद्ध भगवंत वर्ण, गन्ध, रस आदि से रहित होते हैं । वे नित्य आनन्द अव्याबाध सुख में लीन होते हैं, परम ज्योतिरूप होते
एक सिद्ध जिस अवगाहना में होते हैं, उतनी ही अवगाहना में अनन्त सिद्ध होते हैं ।
पुनः वे इस संसार में आनेवाले नहीं हैं । सादि अनन्तकाल की उनकी स्थिति है । वे अपनी आत्म-सम्पत्ति के राजा हैं ।
उनकी समस्त शक्तियां पूर्णरूप से व्यक्तिरूप बनी हैं, वे ही शक्तियां हमारे भीतर भी हैं, परन्तु व्यक्ति नहीं हैं । सिद्ध में व्यक्ति हैं । व्यक्ति अर्थात् प्रकट ।
स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र आदि के सम्बन्ध में अवसर पर समझायेंगे, परन्तु इस समय इतना समझ लें कि स्वक्षेत्र की विचारणा से मोहराजा का ९९ प्रतिशत भय कम हो जाता हैं । क्यों ?
भगवान ने कहा है - समस्त पदार्थ स्वरूपमें हैं ही, पररूपमें नहीं हैं। इतनी बात निश्चित हो जाये तो भय किस बात का ?
भगवती सूत्र में कहा है – 'अत्थित्ते अत्थित्तं परिणमइ, नत्थित्ते नत्थित्तं परिणमइ । कहे क
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