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लाभ होना चाहिये उतना लाभ नहीं होता । ध्यान के लिए मन को निर्मल एवं स्थिर बनाना पड़ता हैं । उसके बाद ही मन ध्यान में निश्चल बन सकता है, तन्मय बन सकता हैं ।
- अभी दिखाई देनेवाले प्रकाश के पीछे सूर्य कारण है, उस प्रकार ज्ञान का जो प्रकाश हमारे पास है, उसके पीछे अरिहंत का केवलज्ञान कारण हैं । हमें गर्व रखने की जरूरत नहीं है। चारों ओर ज्ञानावरणियों के पर्वतो में हम घिरे हुए है, अन्धकार है। उसमें थोड़ा प्रकाश मिल जाये तो अभिमान किस बात का ? हमारे कारण से प्रकाश नहीं आया । सूर्य के कारण आया है।
ज्ञान सूर्य है।
सूर्य से अधिक तेजस्वी वस्तु दूसरी हमें नहीं दीखती । अतः ज्ञान को सूर्य की उपमा दी है । वास्तव में तो ज्ञान असंख्य सूर्यों से भी अधिक देदीप्यमान है ।
. 'आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।' भगवान का मुख-मण्डल इतना तेजस्वी होता है कि हम उस ओर देख नहीं सकते । भामण्डल उस तेज को शोष लेता है, ताकि हम देख सकते हैं। ऐसे भगवान जब देशना देते होंगे तब कैसे सुशोभित होते होंगे ?
आप जब प्रभावना देते हैं तब सभी को देते हैं कि छोटेबड़े का भेद रखते हैं ? भगवान भी कोई भेद-भाव रखे बिना सब को ज्ञान-प्रकाश देते हैं । आचार्यश्री मलयगिरिजी ने टीका में लिखा है -
योग-क्षेम करना ही प्रभु का कार्य है। समवसरण में अनेक जीव सिर्फ चमत्कार, ऐश्वर्य एवं समृद्धि देखने के लिए ही आते हैं । वे यदि प्रशंसा के दो शब्द कहें तो समझे कि उनके हृदय में धर्म-बीज का वपन हो गया । इस समय अनेक व्यक्ति आडम्बर-आडम्बर कहकर धर्म की अपभ्राजना करते हैं, परन्तु दुकान में क्या आडम्बर नहीं किया जाता ? ।
भगवान को या गुरु को आडम्बर की जरूरत नहीं है । वे आडम्बर करते भी नहीं है, परन्तु देव करते हैं । गुरु के लिए भक्त करते हैं । जब धूम-धाम से नगर-प्रवेश होता है तब क्या प्रभाव पड़ता है, जानते हैं ?
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