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उज्जैन में वि. संवत् २०३८में जब प्रवेश हुआ तब बड़ेबड़े मिनिस्टर आकर पूछने लगे : 'क्या जैनों का कोई कुम्भमेला हैं ?'
. नमोऽनंत संत प्रमोद प्रधान ।'
अनन्त आनन्द का मूल एक मात्र नवपद है । नवपद में भी अरिहंत है ।
9 भगवान केवल हित-बुद्धि से धर्म-देशना देते हैं ।
धर्म के बिना कोई हितकर नहीं है। यदि धर्म को निकाल दो तो कुछ भी हितकर नहीं बचेगा । धर्म स्वीकार करके आप भगवान को अपना साथी बनाते हैं ।
भगवान कैसे हैं ? वे अष्टप्रातिहार्यों से सुशोभित है, देवेन्द्रों द्वारा पूजित हैं, वे जगत के नाथ एवं जगत् के सार्थवाह हैं । इस प्रकार उनके लिए जितनी उपमा लगायें उतनी कम हैं ।
भगवान के कल्याणकों में नरक के जीवों को भी प्रकाश प्राप्त होता है, वे क्षणभर के लिए सुख प्राप्त करते हैं । देशना श्रवण करनेवाले ही सुख प्राप्त करते हों, ऐसी बात नहीं है ।
भगवान दिन में दो-दो बार एक-एक प्रहर तक देशना देते हैं, फिर भी उनकी शक्ति में कोई न्यूनता नहीं आती । वे देशना में अमृत की वृष्टि करते हैं ।
पुष्करावर्तमेघ की तरह भगवान देशना की वृष्टि करते हैं ।
उल्लू सूर्य के प्रकाश से वंचित रहता है, अन्य कौन वंचित रहेगा ? भगवान की इस देशना से मिथ्यात्वी आदि वंचित रहते हैं, अन्य कौन वंचित रहेगा ?
वह देशना आज भी आगमों के रूप में सुरक्षित है । जिनागम अर्थात् 'टेप' ही समझ लीजिये । टेप करने वाले थे - गणधर भगवंत ।
आज भी आगम पढने पर ऐसा लगता है कि साक्षात् भगवान बोल रहे हैं ।
'विद्युत् पावर हाउस में से वायर के द्वारा जैसे घर में प्रकाश आता है, पानी की टंकी में से पाईप के द्वारा जैसे घर में पानी आता है; उस प्रकार प्रभु का नाम, मूर्ति, आगम आदि सब वायर एवं पाईप जैसे वाहक हैं, जो भगवान को हम तक पहुंचाते हैं । कहे कलापूर्णसूरि - १ **
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