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पदवी-प्रसंग, पालीताणा, वि.सं. २०५७, मार्ग. सु. ५
श्रीमती रमाबेन हंसराज नीसर खारोई (कच्छ-वागड़ ) द्वारा आयोजित शाश्वत ओली के प्रसंग पर
१६-१०-१९९९, शनिवार आ. सु. प्र. ७
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आत्मा के सहज स्वरूप को जानने के लिए जैनदर्शन ने अत्यन्त ही विस्तारपूर्वक लिखा है ।
ज्ञान-क्रिया, रत्नत्रयी, दान आदि ४, अहिंसादि तीन (अहिंसा, संयम, तप) ये समस्त मोक्ष मार्ग है । सभी सच्चे मार्ग हैं । एक मार्ग की आराधना में दूसरी आराधना का समावेश हो ही जाता है । प्रकार अलग लगेंगे, वस्तु एक ही है । दूध से कितनी अलगअलग मिठाईयां बनती हैं ? परन्तु मूल वस्तु एक ही है । उस प्रकार यहां भी मूल वस्तु एक ही हैं । वहां भूख मिटाना ही लक्ष्य है, उस प्रकार यहां विषय- कषाय नष्ट हो, आत्मगुणों का विकास हो, यही लक्ष्य है ।
✿ नवपद का ध्यान करने से श्रीपाल - मयणा को इतना फल मिला । हम वह ध्यान पद्धति नहीं अपनाते, जिससे जितना (कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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