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इसे पहचानने में चौदह पूर्वी भी धोखा खा गये हैं ।
प्राचीनकाल के वीर पुरुषों को युद्ध के लिए प्रयाण करने से पूर्व उनकी पत्नियां बिदा-तिलक लगाती ।।
या तो विजय या तो स्वर्ग ! योद्धाओं के लिए दो ही विकल्प रहते थे ।
मोक्ष की साधना में भी ऐसा संकल्प लेकर निकलना चाहिये । कच्चे व्यक्तियों का यहां काम नहीं है।
चिन्तन उपयोगी क्यारे बने ? सत्शास्त्रोमां तत्त्वतुं निरुपण होय छे. गुरुगमवडे ते रहस्यो खुले छे. तेनुं चिंतन जीवने उपयोगी छे. क्यारे ? जो ते साधक एकांतमा छे तो मनना विचारने, वाणीना व्यापारने शारीरिक क्रियाने तत्त्वमय राखे छे. अर्थात् अशुभ हो के शुभ तेने नथी शोक के नथी हर्ष. ते तो आत्मामां संतुष्ट छे जो आ योगोमां ते जागृत नथी तो तेनी तत्त्वदृष्टि शुष्क छे, जे भवसागर तरवामां प्रयोजनभूत बनती नथी.
___(४०६ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - २)
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कहे