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धर्म में गुरु-लाघव की आवश्यकता होती है। इसीलिए आगार है ।
आगारों में आशय यही है कि किसी भी तरह पच्चक्खाण का भंग नही होना चाहिये ।
गुरु-लाघव का चिन्तन नहीं हो तो व्यापार नहीं हो सकता, उस प्रकार धर्म भी नहीं हो सकता । व्यापार में कितनी ही बार बांध-छोड़ करनी पड़ती है, उस प्रकार धर्म में भी बांध-छोड़ करनी पड़ती हैं ।
हमारे व्रत खण्डित न हो जायें, अतः ज्ञानियों ने कितनी सावधानी रखी है ?
आगार अर्थात् अपवाद ।। अपवाद का छूट से प्रयोग नहीं किया जा सकता ।
कोई वैद्य अथवा डाकटर आदि किसी रोग के कारण कहे कि अभी ही दवा देनी पड़ेगी, तो उस समय पच्चक्खाण होते हुए भी दवा दी जा सके, यह अपवाद है ।
सब में समाधि मुख्य है । पच्चक्खाण अखण्ड रहे, परन्तु समाधि अखण्ड न रहे तो पच्चक्खाण किस काम के ? पच्चक्खाण भी आखिर समाधि के लिए हैं ।
आगार का अर्थ है - समाधि के लिए पच्चक्खाण में दी जाने वाली छूट ।
प्रश्न : क्या मुंगफली का तेल (सिंगतेल) विगई में गिना जाता है ?
उत्तर : विगई किसे कहते हैं ? विकृति उत्पन्न करे वह विगई । इस अर्थ में सभी तेल विगई समझ लें । आखिर अपनी आसक्ति न बढे उस प्रकार करना है । ये तेल विगई में नही गिने जाते, यह समझ कर विगई के रस को लेते रहें, तो आत्म-वंचना गिनी जायेगी ।
* अप्रमाद का अभ्यास इसी जन्म का है । प्रमाद का अभ्यास अनन्त जन्मों का है । इसीलिए उसे जीतना दुष्कर है । मद्य (मदिरा), निद्रा, विषय, कषाय, निन्दा आदि प्रमाद हैं ।
इस पंच-मुखी प्रमाद को कैसे पहचानें ? इसे कैसे जीतें ? कहे कलापूर्णसूरि - १ ******************************.४०५)