________________
नहीं है तो परमात्मभाव प्राप्त करनेका अधिकार किस मुंह से कर सकते हैं ?
क्या कभी प्रभु के लिए तड़पन उत्पन्न हुई है ? क्या कभी प्रभु का विरह लगा है ? विरह के बिना क्या प्रभु मिलेंगे ?
आप आनन्दघनजी के पद, स्तवन पढें, विरह-वेदना छलकती प्रतीत होगी ।
प्रश्न : संयोग हुआ हो तो विरह प्रतीत होगा, परन्तु प्रभु का संयोग कहां हुआ है ?
उत्तर : यही हमारी भूल हैं । प्रभु तो सदा साथ है ही, परन्तु हमने कभी उस ओर देखा ही नहीं है ।
बोलो, कभी भी निर्मल आनन्द नहीं आया ? प्रभुके बिना आनन्द कैसे आ सकता है ? उक्त आनन्द प्राप्त करने के लिए क्या कभी तडपन हुई ?
अंधकार में रहा हुआ व्यक्ति कभी प्रकाश की एकाध किरण देखे तो वह उसे पुनः प्राप्त करने के लिए अवश्य ललचायेगा । जिस प्रकार वह सेवाल में रहा हुआ कछुआ शरदपूर्णिमा का वैभव पुनः देखने कि लिए लालायित हुआ ।
. समस्त धोबी आपके कपड़े धोने की कला के समक्ष हार जायें, इतने कपड़े आप धोकर सफेद कर सकते हैं । यह कला हस्तगत हो गई, परन्तु आत्मा जो अनादि काल से मलिन है । उसकी शुद्धि करने की कला हस्तगत करने जैसी है, ऐसा कभी लगा ?
• आयंबिलमें दो आगार अधिक : १. उक्खित्त विवेगेणं, २. पडुच्चमक्खिएणं ।
कभी एकासणा के आहार के साथ आयंबिल का आहार आ जाये तो थोड़े स्पर्श से दोष नहीं लगता ।
तेल या घी वाले हाथ से रोटी के लिए आटा तैयार करें तो नीवी वाले को चलेगा, परन्तु आयंबिल वाले को नहीं चलेगा ।
आगार किस लिए ? व्रत का भंग भारी दोष है । थोड़ा पालन भी गुणकारी है ।
**** कहे कलापूर्णसूरि - 3
४०४ ******************************
कहे