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पदवी-प्रसंग, पालीताणा, वि.सं. २०५७, मार्ग. सु. ५
१४-१०-१९९९, गुरुवार आ. सु. ५
✿ भगवान भले ही नहीं है, परन्तु उनके तीर्थ के, नाम के, आगम के और मूर्ति के आलम्बन से हम भवसागर तर सकते हैं । छोटे बच्चे के लिए माता-पिता का आलम्बन आवश्यक है । उनके सहारे से ही वह चल सकता है । भगवान के समक्ष हम सभी बालक हैं ।
भगवान जिस प्रकार स्वयं में व्यक्तरूप से ज्ञान आदि समृद्धि देख रहे हैं, उसी प्रकार से वे शक्ति के रूप में समस्त जीवों में भी देख रहे हैं I
भगवान में जो वृक्ष के रूप में है;
समस्त जीवों में वह बीज के रूप में हैं ।
✿ साधु का कोई भी अनुष्ठान समतापूर्वक होता है, यह बतानेके लिए ही दिन में नौ बार सामायिक का पाठ आता है । दीक्षा ग्रहण करने के समय पर भी प्रथम यही प्रतिज्ञा ली गई है ।
गुलाबजामुन को जानना अलग बात है,
(कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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