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मोह का क्षय नहीं हुआ हो तो भी मोह-विजेता होने के कारण गुरु वीतराग तुल्य कहलाते हैं ।
ॐ चार प्रकारके केवली : १. केवली । २. चौदहपूर्वी - श्रुतकेवली ३. सम्यग्दृष्टि
४. भगवान के वचनों के अनुरूप आचरण करनेवाले (कन्दमूल आदि के त्यागी)
कल भगवती में उल्लेख था -
स्कंधक परिव्राजक को श्रावक ने ऐसे प्रश्न पूछे कि परिव्राजक घबरा गया और उत्तर जानने के लिए वह भगवान महावीर के पास गया । उसके आते ही गौतमस्वामी खड़े हो गये ।
मिथ्यात्वी के आने पर खड़ा क्यों हुआ जाये ?
टीका में स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि भविष्य में दीक्षा ग्रहण करनी है अतः खड़े हो सकते हैं ।
सम्यग्दृष्टि इसी अर्थ में केवली हैं। वे भविष्यमें केवली बनने वाले हैं।
कन्दमूल त्यागी भी केवली है, क्योंकि भगवान के वचनों पर श्रद्धा रखकर उसने कन्दमूल का त्याग किया है। यह सम्यग्दृष्टि की पूर्व भूमिका की आत्मा है ।
प्रश्न : गुरु भगवान है, अतः जिनालय में जाने की आवश्यकता नहीं है न ?
उत्तर : भगवान नहीं होते तो भगवद्बुद्धि कैसे करते ? अमृत ही नही होता तो पानी में अमृत बुद्धि कैसे होती ? भगवान है, अतः भगवद्बुद्धि शब्द आया है । भगवान ही छोड़ देंगे तो भगवद्बुद्धि कैसे रहेगी ?
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