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वि.सं. २०५६
१२-१०-१९९९, मंगलवार
आ. सु..३
मोक्ष में शीघ्र जाना हो तो उसके उपायों में तन्मय हो जाना चाहिये । रत्नत्रयी उसका उपाय है । उपाय में शीघ्रता करेंगे तो उपेय शीघ्र मिलेगा।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र उपाय है । मोक्ष उपेय है । मोक्ष शीघ्र नहीं जायेंगे तो हानि क्या है ? संसार-परिभ्रमण चालु रहे यही हानि है ।
पंचेन्द्रिय की लम्बी से लम्बी स्थिति १००० सागरोपम की है । उतने समय में मोक्ष में यदि नहीं गये तो विकलेन्द्रिय आदि में जाना पड़ेगा ।
___अमुक समय में यदि हमने सद्गति निश्चित नहीं की तो दुर्गति निश्चित है ।
दुर्गति दुर्भावों से होती है। अतः दुर्भावों से मन को बचाना चाहिये । ज्यों ज्यों मन उच्च भूमिका का स्पर्श करेगा, त्यों त्यों दुर्भाव घटते जायेंगे।
. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ज्यादा से ज्यादा ६६ सागरोपम रहता हैं । फिर वह क्षायिक हो जाता है ।
कह
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