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चौथे गुण - स्थानक का हमको स्पर्श हुआ है कि नहीं ? उसका आत्मनिरीक्षण करना चाहिये ।
हममें सम्यकत्व के लक्षण हैं ?
बुखार उतरा या नहीं ? वह आरोग्य के चिन्हों से प्रतीत होता है, उस प्रकार अनन्तानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व आदि मिटे कि नहीं, यह सम्यकत्व के लक्षणों से मालुम होता है ।
__ हमारे कषायों की मात्रा अनन्तानुबंधी की कक्षा की तो नहीं ही होनी चाहिये । "जिम निर्मलता रे रतन स्फटिकतणी, तिम ए जीव स्वभाव; ते जिन वीरे रे, धर्म प्रकाशियो, प्रबल कषाय अभाव'
प्रबल कषायों का अभाव ही धर्म का लक्षण है । किसी के साथ कटुता की गांठ बांध लेना उत्कृष्ट कषायों का चिन्ह है।
पाप-भीरु एवं प्रियधर्म - ये धर्मी के दो खास लक्षण हैं ।
कांटे चुभने पर वेदना होती है, उस प्रकार कषायों से वेदना होनी चाहिये । हमें कांटे चुभते हैं, लेकिन कषाय कहां चुभते हैं ?
___'वाव'की ओर हमारी साध्वीजी पर एक साथ अनेक मधुमक्खियों चिपक गई । कितनी वेदना हुई होगी ? एक कांटे से शीलचन्द्रविजयजी स्वर्गवासी हो गये थे ।
__एक जंग लगी कील से अमृत गोरधन भचाउवाले का इकलौता पुत्र प्रभु मृत्यु की गोद में समा गया । उसे धनुर्वात हो गया था ।
इससे भी ज्यादा खतरनाक कषाय हैं । अतः थोड़े कषायों का भी विश्वास करने जैसा नहीं है। ऐसा ज्ञानियों का कथन है । _ 'सम्यक्त्व सप्ततिका' ग्रन्थ में सम्यक्त्व का पूर्ण वर्णन है, लेकिन उसे पढता है कौन ? इसीलिए तो पू. यशोविजयजी जैसे को समकित के ६७ बोलों की सज्झाय' आदि जैसी गुजराती कृतियों की रचना करनी पड़ी ।।
सम्यक्त्व हो ही नहीं तो फिर उसकी शुद्धि क्या ? वस्त्र हों तो मैले हो, निर्वस्त्र व्यक्ति को क्या ? यह समझकर सम्यक्त्व के प्रति दुर्लक्ष्य न रखें । हो सके तो उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें ।
याद रहे कि परभव में ले जाने योग्य सिर्फ सम्यग्दर्शन ही
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