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का मंत्र है।
एकाग्रतापूर्वक प्रभु का जाप करने से दोष नष्ट होते ही है । __'भोजन करेंगे और पुनः भूख लगेगी तो' ऐसी शंका से हम भोजन करना बंद नहीं करते । भूख लगने पर भोजन करते ही है, उस प्रकार दोषों को जीतने के लिए बार-बार कायोत्सर्ग करो, प्रभु का स्मरण करो ।
कायोत्सर्ग अर्थात् स्तोत्रपूर्वक का प्रभु का ध्यान ।
सम्पूर्ण प्रतिक्रमण भक्ति ही है । अतः अलग विषय लेने की आवश्यकता ही नहीं है ।
प्रतिक्रमण में कितने कायोत्सर्ग आते हैं ? समस्त कायोत्सर्ग भक्ति प्रधान ही हैं ।
भगवान का प्रत्येक अनुष्ठान प्रमाद को जीतने के लिए ही है । प्रत्येक भोजन भूख मिटाने के लिए ही होता है ।
जिन्होंने कर्म-रिपुओं को जीतने की कला सिद्ध की हैं, उन्होंने यह प्रतिक्रमण आदि कला हमें बताई है ।
पुनः प्यास, पुनः जल, पुनः भुख, पुनः भोजन; उस प्रकार पुनः प्रमाद, पुनः कायोत्सर्ग । भोजन - पानी में नहीं थकते तो कायोत्सर्ग में थकान कैसी ? आयरिय उवज्झायवाला दो लोगस्स का पचास श्वास का काउस्सग्ग चारित्र-शुद्धि के लिए, उसके बाद का २५ श्वास का काउस्सग्ग दर्शन-शुद्धि के लिए और उसके बाद का २५ श्वास का काउस्सग्ग ज्ञान-शुद्धि के लिए है ।
प्रियधर्मी, पाप-भीरु संविग्न साधु ही ऐसा कायोत्सर्ग विधिपूर्वक कर सकते है । चारित्र सार है, यह बताने के लिए यहां पश्चानुपूर्वी से क्रम है ।
चारित्र की रक्षा के लिए सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान है। अतः बाद में इनके (दर्शन-ज्ञान के) कायोत्सर्ग करने हैं । 'चरणं सारो, दंसण-नाणा अंगं तु तस्स निच्छयओ ।'
निश्चय से आत्मार्थी जीवों को चारित्र प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये।
प्रश्न : ज्ञान, दर्शन, आदि आचारों के अतिचार तो हम बोलते हैं, परन्तु उसकी प्रतिज्ञा कब ली ?
(कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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