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भूख लगने पर नित्य भोजन करते हैं न ? यहां हम अनवस्था नहीं देखते ।
पू. देवेन्द्रसूरि स्त्री-संघट्टा होने के बाद तुरन्त काउस्सग्ग कर लेते ।
उसी समय (दोषों के सेवन के समय) काउस्सग्ग आदि करने में आयें तो हम अनेक दोषों से मुक्त हो सकते हैं ।
'भयो प्रेम लोकोत्तर झूठो, लोक बंध को त्याग । कहो होउ कछु हम नहीं रुचे, छूटी एक वीतराग.'
हम प्रमाद से भावित हैं, परन्तु उपर्युक्त उद्गारों को प्रकट करनेवाले पूज्य यशोविजयजी महाराज प्रभु के गुणों से, प्रभु के प्रेम से वासित हैं।
कल्पवृक्ष के बगीचे में आप कल्पवृक्ष से वासित बनते हैं । उकरडा (घूरा) में विष्टा से वासित बनते हैं। आपको किससे वासित होना है ? दोषों से या गुणों से ?
गुण कल्पवृक्ष हैं । दोष विष्टा है।
भक्ति ही भगवान के अलावा दूसरे-दूसरे पदार्थों से वासित हुए चित्त को छुड़ा सकती है ।
गुफा में सिंह आने पर दूसरे पशुओं की क्या ताकत है जो वहां रह सकें ? प्रभु के हृदय में प्रविष्ट होते ही दोषों की क्या ताकत जो वहां रह सकें ?
"तुं मुज हृदय-गिरिमां वसे, सिंह जो परम निरीह रे; कुमत मातंग ना जूथथी, तो किसी मुज प्रभु बीह रे...'
. प्रभु अपने हृदय में आते नहीं है कि हम प्रभु को बुलाते नहीं हैं ? सच बात यही है कि हम प्रभु को बुलाते नहीं हैं।
गभारा तैयार नहीं हुआ हो, स्वच्छता न हो, वहां भगवान की प्रतिष्ठा कैसे हो सकती है ?
हृदय में दोषों का कचरा भरा पड़ा हो, वहां भगवान कैसे आ सकेंगे?
काउस्सग्ग करना अर्थात् भगवान को हृदय में बुलाना । लोगस्स भगवान को बुलाने का आह्वान मंत्र है, वह भी नाम लेकर बुलाने
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १)