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________________ आत्मनिरीक्षण किये बिना दोष दूर नहीं होंगे । जो पाप हुए हो उनका प्रायश्चित्त करें, गुरु साक्षी से गर्हा करें और आत्मसाक्षी से निन्दा करें । हमारे परिणाम गिरकर पूर्णत: चूर-चूर हो जायें उससे पूर्व उन्हें पकड़ लें । बरनी (भरनी) आदि कई बार गिर जाती है, तब हम कैसे बीच में से ही पकड़ लेते हैं ? नीचे गिरती हुई बरनी (भरनी) फिर भी पकड़ सकते हैं, परन्तु गिरते हुए परिणामों को पकड़ना कठिन है । इस प्रकार परिणाम को धारण करके सुरक्षित रखे उसे ही 'धर्म' कहा जाता है । 'धारणाद् धर्म उच्चते ।' ✿ पालीताना में बाढ आने के समय चारित्रविजयजी कच्छीने लगभग एकसौ व्यक्तियों को बचाया था । वे तैराक थे, तैरने की कला जानते थे । साधु-साध्वी संसार - सागर के तैराक गिने जाते हैं । हमारे आश्रय पर आये हुओं को यदि हम नहीं तारेंगे तो दूसरा कौन तारेगा ? ✿ ब्यावर के समीप बलाड़ गांव में 'जिनालय हमारे बापदादों के द्वारा निर्मित है ।' यह पता लगते ही उन्होंने ही प्रतिष्ठा कराई । आचार्य तुलसी को उन्होंने स्पष्ट कह दिया 'आप अपने संघ में हमें गिने या नहीं, हम हमारे बाप-दादों द्वारा निर्मित जिनालय को सम्हालेंगे ।' - वहां हमने प्रतिष्ठा कराई थी । अभी ही 'हगरीबामनहल्ली' में प्रतिष्ठा का चढावा एकतेरापंथी ने लिया था । यहां से निकट मोखा गांव में प्रतिष्ठा लघु पक्ष के स्थानकवासियों ने कराई थी । ✿ दुकान में आग लगने का पता लगने पर आप क्या करते हैं ? तुरन्त बुझा देते हैं न ? मन में भी कषाय उत्पन्न हों, उन्हें तत्काल शान्त कर दें । कषाय अग्नि से भी खतरनाक है । अणथोवं वणथोवं अग्गिथोवं कसायथोवं च । कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ३७९
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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