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________________ न हु भे वीससिअव्वं थोवंपि हु तं बहु होइ ॥ कषाय आदि को नष्ट करने के लिए 'पगामसिज्जाय' आदि सूत्र अत्यन्त उपयोग पूर्वक बोलें । 'एगविहे असंजमे' से लगाकर तैंतीस आशातनाओं तक कैसा वर्णन किया है ? आ समन्तात् शातना = आशातना; चारों ओर से जो समाप्त कर दे वह आशातना है । आग की तरह आशातना से दूर रहें । आग सर्व-भक्षी है. उस प्रकार आशातना भी सर्व-भक्षी है । हमारा सब चौपट कर देती है । पगामसिज्जाय आदि सूत्र कभी दूसरे बोलते हो तो अत्यन्त ही उपयोग पूर्वक सुनें । वे बोलते रहें और हमारा उपयोग अन्यत्र रहे, ऐसा नहीं होना चाहिये । ड्राईवर गाडी चलाते समय जितना जागृत रहता है उतनी ही जागृति सूत्र आदि में होनी चाहिये । प्रश्न - ड्राईवर गाडी चलाता है, दूसरे शान्ति से बैठे रहते हैं, उस प्रकार बोलनेवाले सूत्र बोलते है, अन्य उपयोगशून्य होकर सुनें यह नहीं चलता ? ___ पूज्यश्री - यहां सभी ड्राईवर है । सबकी आराधना की गाडी अलग है । किसी की गाडी दूसरा कोई नहीं चला सकता । आपकी गाडी आपको ही चलानी है । इसीलिए तो भगवान महावीर ने इन्द्र को सहायता के लिए इनकार किया था । मेरी साधना मेरी ओर से कोई दूसरा कैसे कर सकता है ? दूसरों के कन्धे पर बैठ कर मोक्ष-मार्ग पर नहीं जा सकते । आपकी ओर से अन्य कोई भोजन कर ले तो चलेगा ? - आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, साधु . आदि किसीके भी साथ अपराध हुआ हो तो उसकी क्षमा याचना करनी चाहिये । 'आयरिय उवज्झाए' सूत्र यही सिखाता है । जिसका धर्म में ओतप्रोत चित्त हो वही क्षमापना कर सकता है । 'उवसमसारं खु सामण्णं', समग्र साधुता का सार उपशम है । सांवत्सरिक पर्व क्षमापना पर्व है । जैनों में यह पर्व इतना व्यापक है कि भारत या विश्व के किसी भी कोने में रहा हुआ कहे कलापूर्णसूरि - १) ३८० ****************************** कहे
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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