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मद्रास में ऐसी दशा हो गई, स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि जाने की तैयारी थी । मुहपत्ति के बोल भी नहीं बोल सकता था । ऐसी दशा से मुझे उगारने वाला कौन ? माता के अलावा कौन है ? भगवान में मैं 'माता' का दर्शन करता हूं । उन्होंने आकर मुझे बचा लिया । भगवान ने मानो मुझे पुनर्जन्म दिया ।
आज मुझे लगता है कि
'मग्गो अविप्पणासो, आयार विणयण सहाएहिं ' निर्युक्ति में इस प्रकार श्री भद्रबाहुस्वामी ने पंच परमेष्ठियों के गुण गिनाये हैं । अरिहंत मार्गदर्शक हैं ।
सिद्ध अविनाशी है ।
आचार्य आचार- पालक एवं आचार- प्रसारक हैं ।
उपाध्याय ज्ञान का विनियोग करनेवाले हैं । साधु मोक्ष मार्ग में सहायक हैं ।
✿ दूसरे का ज्ञान हमारे भीतर किस प्रकार संक्रान्त होता है ? विनय से, बहुमान से संक्रान्त होता है ।
विनय होगा तो ज्ञान आयेगा ही । इसीलिए ज्ञान की अधिक चिन्ता न करें, विनय की करें । नवकार विनय सिखाता है | नवकार विनय का मंत्र है । नवकार अक्कड़ मनुष्यों को झुकना सिखाता है । नवकार बार-बार कहता है नमो नमो नमो ।
भवमां भमशो ।'
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'नमशो तो गमशो, नहि तो एक बार नहीं, छः बार 'नमो' का प्रयोग नवकार में हुआ नमो से विनय आता है, विनय एक प्रकार की समाधि है - ऐसा श्री दशवैकालिक में कहा है ।
अरिहंत के पास मार्ग प्राप्त करना है ।
१ भगवान मार्गदर्शक ही नहीं, स्वयं भी मार्गस्वरूप है ।
अतः भगवान को पकड़ लो, मार्ग अपने आप आ जायेगा । देखिये उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं
ताहरु ध्यान ते समकितरूप,
तेहिज ज्ञान ने चारित्र तेह छेजी;
तेहथी रे जाये सघला हो पाप, ध्याता ध्येय स्वरूप होये पछीजी ।
कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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