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करनी चाहिये ।
जिसे सम्यग्दर्शन हो गया उसे आत्मदर्शन, तत्त्वदर्शन एवं विश्वदर्शन हुआ समझें ।
. भक्ति का दूसरा प्रकार - मार्जारी भक्ति ।।
वानर-शिशु माता को पकड़ता है, जबकि यहां बिल्ली बच्चों को पकड़ती है । ज्ञानी एवं भक्त की भक्ति में इतना अन्तर है।
ज्ञानी भगवान को पकड़ता है, यह वानरी भक्ति है, उदाहरणार्थ अभयकुमार ।
भगवान भक्त को पकड़ते है, यह मार्जरी भक्ति है, उदाहरणार्थ - चण्डकौशिक ।
अभयकुमारने भगवान को पकड़े थे। येन केन प्रकारेण दीक्षा ग्रहण करके भगवान का शरण लिया था, जबकि चंडकौशिक का उद्धार करने के लिए भगवान स्वयं वहां तक गये थे।
. जीयात् पुण्यांगजननी, पालनी शोधनी च मे ।
मेरे पुन्यरूप देह की जननी, उसका पालन, शोधन करनेवाली माता की जय हो ।
माता क्या करती है ? बालक को जन्म देती है, सम्हालती है और स्वच्छ रखती है । माता के अलावा यह कार्य कौन कर सकता है ? याद है यह सब ? शैशव को याद करें । जब आप पालने में झूलते थे, सोते थे, तब आपको कौन झुलाता था ? कौन झूला-गीत गाता ? कौन दूध पिलाता था ? कौन मन्दिर ले जाता था ? कौन नवकार सिखाता था ?
ऐसे संस्कार देनेवाली माता को भला कैसे भूल सकते हैं ? उसकी अवहेलना कैसे की जा सकती है। चारसौ साधकों में माताकी अवहेलना करनेवाला कोई भी नहीं होगा । अवहेलना करने वाले की यहां आने की इच्छा ही नहीं होगी ।
हम रोते और माता दौड़ती हुई आती । 'हमें भूख लगती और माता दूध पिलाती ।
हम बिस्तर बिगाड़ते, गीला करते और माता उसे हटाकर हमें सूखे बिस्तर पर सुलाती । ऐसी माता को क्या आप भूल सकते हैं ? भगवान भी जगत् की मां है, जगदम्बा है ।
**** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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