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गुरु तत्त्व है, व्यक्ति नहीं । आप बहुमान करते हैं, आप नारे लगाते हैं वे व्यक्ति के नहीं, गुरु-तत्त्व के हैं ।
गुरु को पकड़ कर रहता है उसे गुरु भवपार करा देते हैं, यह है वानरी भक्ति । वानर-शिशु का काम सिर्फ इतना ही है कि पकड़ कर रहना ।
रेलगाडी में जानेवालों का सिर्फ इतना ही काम है कि रेलगाडी में बैठा रहना, जो स्वयं इष्ट स्थान पर पहुंच जाता है ।
_ 'उवस्सगहरं' में कहा है - 'ता देव दिज्ज बोहिं', 'भगवन् ! मुझे बोधि प्रदान करें ।' सब कुछ होता तो इस प्रकार मांगने की जरूरत क्या ?'
. कल चतुर्दशी है। आयंबिल करना । मंगलरूप है, विघ्ननिवारक है। थाली, जीभ, मन आदि पर कुछ नहीं चिपकेगा ।
आयोजक न कह सकें, परन्तु हम कह सकते हैं । यदि कल मजा आ जाये तो आश्विन ओली में आ जाना ।
परमतत्त्व चिन्तन परमतत्त्वनुं के परमात्मानुं चिन्तन शुद्ध भावनुं कारण बने छे. अग्निमां नांखेलु सुवर्ण प्रतिक्षण अधिक - अधिक शुद्ध थतुं जाय छे, तेम परमात्मानी भक्तिमां तेना गुण-चिंतनमां साधक अखंड धारा राखे तो तेनो आत्मा पण वधु ने वधु शुद्ध थतो जाय छे. प्रभुभक्तिनुं आ योगबळ सर्वत्र अने सर्वदा जयवंतुं वर्ते छे.
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