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गहन अभ्यास से डाले हुए तप के संस्कार जन्म-जन्मान्तर में भी साथ चलते हैं । तप के ही नहीं, किसी भी गुण या अवगुण के संस्कार साथ चलते हैं ।
. पंचपरमेष्ठी करुणा के भण्डार हैं ।।
करुणा पराकाष्ठा पर न पहुंचे तो भगवान तीर्थंकर नाम-कर्म बांध नहीं सकते । दुःखी जीवों की दया का अभाव हो वहां क्या करुणा सम्भव हैं ? करुणाई चित्त दुःख-त्रस्त जीव की उपेक्षा नहीं कर सकता । जो उपेक्षा करता है उसमें करुणा आई हुई नहीं कही जा सकती, ध्यान परिणत हुआ नहीं कहा जा सकता ।
• नवकार आत्मसात् करने से करुणा बढेगी, गुण बढेंगे और देव-गुरु-भक्ति बढेगी ।
. दूसरे के गुण देखकर आप प्रसन्न हुए तो वे गुण आपके भीतर प्रविष्ट होने प्रारम्भ हो गये समझें । आज हमें स्वयं के गुणों के लिए प्रमोद है । क्या हम में अन्य व्यक्तियों के गुणों के लिए प्रमोद हैं ?
गुण रुके हुए क्यों हैं ? अभिमान के कारण रुके हुए हैं । दूसरी माता नम्रता का संचार करके गुणों का द्वार खोल देती है ।
नवकार में छः बार 'नमो' आता है । १०८ नवकारों में ६४८ बार नमो आता है । आपने कितनी मालाएं गिनी ?
अब नम्रता कितनी बढी ? नवकार गिनने के बाद नम्रता बढनी चाहिये ।
नम्र ही भक्त बन सकता है । नम्र ही प्रमोद बढा सकता है ।
नम्र ही गुणों को आमंत्रण दे सकता है । ! . लोगों की भाषा अलग होती है, भक्तों की भाषा अलग होती है। लोग कहते हैं - 'भगवान वीतराग हैं । भगवान को कोई लेना-देना नहीं है।'
__ भक्त कहता हैं - 'भगवान करुणामय हैं । वे सब कुछ देते हैं ।' 'त्वं शंकरोसि' के द्वारा सीना ठोककर मानतुंगसूरि कहते हैं - 'प्रभु ! आप ही सुखकर्ता शंकर है ।'
देनेवाले भगवान हैं । आप क्या देंगे ? दस-बीस मंजिल कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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